Harela Festival: हरियाली का त्योहार जो लाता है खुशहाली और समृद्धि

Harela Festival, जिसे हरियाली का दिन भी कहा जाता है, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है। यह त्योहार खासकर कुमाऊं क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है और इसे हरियाली का प्रतीक माना जाता है। Harela Festival का मतलब है “हरे दिन”, और यह त्योहार श्रावण मास की पहली तिथि को मनाया जाता है, जो मॉनसून सीजन की शुरुआत का संकेत देता है। इस दिन लोग अच्छी फसल और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

Harela Festival

हरेला (Harela Festival) का महत्व

Harela Festival कृषि आधारित समुदायों के लिए बेहद शुभ माना जाता है क्योंकि यह उनके खेतों में बोवाई चक्र की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन लोग पांच से सात प्रकार के बीज (मकई, तिल, उड़द, सरसों) बांस की टोकरियों में बोते हैं और प्रतिदिन पानी देते हैं। हरेला के दिन इन बीजों के अंकुर दिखाई देने लगते हैं, जो नई फसल की उम्मीद का प्रतीक होते हैं।

कैसे मनाया जाता है Harela Festival?

हरेला से एक दिन पहले, लोग मिट्टी से भगवान शिव और देवी पार्वती की मूर्तियाँ बनाते हैं, जिन्हें डिकारे या डिकार कहा जाता है, और उनकी पूजा करते हैं। हरेला के दिन लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की शादी का जश्न मनाते हैं और आने वाले फसल सीजन के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।

पर्यावरण संरक्षण और हरेला

Harela Festival का एक महत्वपूर्ण पहलू पर्यावरण संरक्षण भी है। उत्तराखंड की संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, और हर साल हरेला पर पौधारोपण करना पर्यावरण को बचाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह त्योहार लोगों को प्रकृति और पर्यावरण से जोड़ने का काम करता है। इस अवसर पर विभिन्न थोल्स/मेलों का आयोजन भी किया जाता है।

Harela Festival

Also Read:पर्यटकों के लिए चेतावनी: Rivers और Water bodies के पास बढ़ती Drowning की घटनाएं

उत्तराखंड में हरेला का जश्न

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने गाँववासियों के साथ पौधे लगाकर हरेला का जश्न मनाया और पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए आगंतुकों को पौधे उपहार में देने का आग्रह किया। इस दिन, सभी सरकारी विभाग, संस्थान, स्कूल, गैर-लाभकारी संगठन, स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय लोग पौधारोपण अभियान में भाग लेते हैं।

हरेला के दिन लोग कुमाऊंनी भाषा में निम्नलिखित पंक्तियाँ गाते हैं:
“जी रैया, जागी रैया, तिस्तेया, पनपिया,
दूब जैसी हरी जड़ हो, ब्यार जस फईये,
हिमालय में ह्यून चां तक,
गंज्यू में पानी चां तक,
यो दिन और यो मास भेटने रैया।”

इन पंक्तियों का अर्थ है: “तुम लंबे समय तक जियो, जागरूक रहो, हरेला का यह दिन तुम्हारी जिंदगी में कई बार आए, तुम्हारा वंश और परिवार फसल की तरह फले-फूले, तुम्हारी जिंदगी धरती की तरह फैले, आकाश की तरह ऊँची हो, तुम इस धरती पर तब तक रहो जब तक हिमालय पर बर्फ़ है और पवित्र गंगा और यमुना नदियाँ हिमालय से बहती हैं।”

हरेला का खान-पान

हरेला के अवसर पर विभिन्न स्वादिष्ट पकवान जैसे कि खीर, पूआ, पुरी, रायता, छोले आदि बनाए जाते हैं। यह त्योहार लोगों को आपस में जोड़ता है और सामुदायिक भावना को बढ़ावा देता है।

Harela Festival न केवल एक धार्मिक पर्व है बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण और सामुदायिक विकास का भी प्रतीक है। यह त्योहार हमें याद दिलाता है कि प्रकृति का संरक्षण हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। उत्तराखंड के लोग हर साल इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाते हैं और अपने समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को सजीव रखते हैं।

इस Harela Festival पर, आइए हम सब मिलकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम बढ़ाएं और प्रकृति की इस अनमोल धरोहर को बचाने का संकल्प लें।

Also Read:चौंकाने वाली घटना: Tinder Date के दौरान IAS Aspirant से ठगी, जानिए पूरा मामला

Leave a comment

RSS
Follow by Email
X (Twitter)
Post on X
Instagram
WhatsApp